Sunday, June 8, 2025
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“पचास वर्षों की तपोमय यात्रा” — मुनि श्री धनंजय कुमार जी की साधना को समर्पित अभिनंदन समारोह एवं ग्रंथ विमोचन

एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (नागर विमानन मंत्रालय) के सदस्य डॉ. कमल जैन सेठिया ने बताया कि जैन तपस्वी मुनि श्री धनंजय कुमार जी की नव प्रकाशित पुस्तक ‘महाप्रज्ञा मंथन’ का भव्य अनावरण समारोह कल रोहिणी में आयोजित किया जाएगा। इस पावन अवसर पर मुनि श्री के संन्यास जीवन के 50वें वर्ष में प्रवेश का आध्यात्मिक उत्सव भी मनाया जाएगा।
मुख्य अतिथि के रूप में दिल्ली सरकार के कैबिनेट मंत्री श्री रविंद्र इंद्राज सिंह इस समारोह की शोभा बढ़ाएंगे।
यह कार्यक्रम 106, ग्रीन वैली, रोहिणी सेक्टर 23, पॉकेट 4 और 5 (मैक्सफोर्ट स्कूल के सामने) के परिसर में प्रातः 8:30 से 10:30 बजे तक आयोजित किया जाएगा। कार्यक्रम के उपरांत सभी श्रद्धालुओं के लिए सात्विक भोजन की व्यवस्था भी की गई है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता दिल्ली राज्य उपभोक्ता आयोग के माननीय न्यायाधीश श्री सुभाष चंद्र जैन करेंगे।
विशिष्ट अतिथि के रूप में भारत सरकार की संस्था APEDA के सदस्य तथा हिंदी सलाहकार समिति के माननीय सदस्य श्री अनिल जैन उपस्थित रहेंगे।
मुनि श्री की तपोमयी साधना के ५० वर्ष
यह आयोजन केवल एक महापुरुष की यात्रा नहीं, अपितु जिन शासन की जीवंत प्रेरणा, संयम, ध्यान और आत्मकल्याण की जीवित मूर्ति, मुनि श्री धनंजय कुमार जी की पचास वर्षीय तप साधना की झलक है।
किशोरावस्था में दीक्षा लेकर, उन्होंने जीवन की समस्त भौतिक सीमाओं का त्याग कर आत्मा के शुद्ध स्वरूप की ओर कदम बढ़ाया। इस यात्रा में उनका प्रत्येक क्षण त्याग, ध्यान और आत्म-निर्माण को समर्पित रहा।
मुनि श्री ने न केवल स्वयं को तप से शुद्ध किया, बल्कि सैकड़ों आत्माओं को आत्म-जागरण की राह दिखाई। उनका जीवन, उनका मौन, उनकी दृष्टि और आचार हमें आत्ममंथन के लिए प्रेरित करते हैं।
संयम का संदेश
उनकी तपस्या हमें यह सिखाती है कि —
•जीवन की सच्ची सफलता सत्ता या संपत्ति में नहीं, संयम और आत्मानुशासन में है।
•मौन भी एक अमोघ उपदेश बन सकता है।
•और तप का तेज, किसी भी अलंकार से अधिक प्रभावशाली होता है।
संकल्प का आमंत्रण
आइए, इस पावन अवसर पर हम सब मुनि श्री धनंजय कुमार जी के चरणों में श्रद्धा समर्पित करते हुए यह संकल्प लें:
“हम भी अपने जीवन में थोड़ा संयम, थोड़ा ध्यान, और थोड़ा आत्मचिंतन जोड़ें — ताकि जीवन केवल जिया न जाए, बल्कि सार्थक भी बने।”
जय जिनेन्द्र।
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